सुप्रीम कोर्ट ने यूपी लोक सेवा आयोग परीक्षाओ में मूल्यांकन के स्केलिंग मेथड को मनमाना करार देते हुए गलत ठहराया , लेकिन अदालत ने इस आधार पर रिजल्ट को रद्द करने से किया इंकार , क्लिक करे और पढ़े खबर

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी लोक सेवा आयोग परीक्षाओ में मूल्यांकन के स्केलिंग मेथड को मनमाना करार देते हुए गलत ठहराया , लेकिन अदालत ने इस आधार पर रिजल्ट को रद्द करने से किया इंकार , क्लिक करे और पढ़े खबर 




सर्वोच्च न्यायालय ने यूपीपीएससी परीक्षा में मूल्यांकन के स्केलिंग मेथड को मनमाना ठहराते हुए उसे गलत करार दिया। पर अदालत ने इस आधार पर बने हुए रिजल्ट को रद्द करने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट का यह आदेश सही है कि स्केलिंग मेथड गलत और मनमाना है, लेकिन उसका रिजल्ट को नए सिरे से फिर से तैयार करने का आदेश सही नहीं है।

 क्योंकि इस परीक्षा में आए नतीजों के आधार पर लोग पिछले 10 सालों से विभिन्न पदों पर काम कर रहे हैं और वे इस मामले में पक्ष भी नहीं हैं। जस्टिस एसए बोब्डे और एल नागेश्वर राव की पीठ ने फैसले में कहा कि इस मामले में उम्मीदवारों ने यह आरोप कहीं नहीं लगाया है कि परीक्षा में कोई अनियिमितता हुई है। यूपीपीएससी की यह परीक्षा आरक्षित वर्ग के बैकलाग (विशेष भर्ती) भरने के लिए 2004 में आयोजित की गई थी। इसका नतीजा 2005 में आया और अंतिम रिजल्ट अक्तूबर 2006 में घोषित किया गया। 

इस मामले में मनोज यादव आदि विफल उम्मीदवारों ने परीक्षा को हाईकोर्ट में चुनौती दी और कहा कि लिखित परीक्षा के मूल्यांकन में स्केलिंग मेथड का प्रयोग किया गया है जिसके कारण उनके प्राप्तांक वास्तविक अंकों से कहीं नीचे जाकर घट गए और वे चयनित नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि इस मूल्यांकन को सुप्रीम कोर्ट भी एक फैसले में (संजय सिंह 2007) मनमाना और गलत ठहरा चुका है। लेकिन इसके बावजूद आयोग ने मूल्यांकन में इस मेथड को अपनाया जबकि उसे मोडरेशन मेथड अपनाना चाहिए था। 
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने छात्रों की याचिका और सुप्रीम कोर्ट के संजय सिंह फैसले के मद्देनजर लिखित परीक्षा के नतीजे को निरस्त कर दिया। उच्च अदालत ने साथ ही यूपी लोकसेवा आयोग को आदेश दिया कि वह नई मेरिट लिस्ट बनाए। कोर्ट ने कहा कि यूपीएएसी ने वैकल्पिक विषयों के साथ-साथ आवश्यक विषयों के मूल्यांकन में भी स्केलिंग विधि का प्रयोग किया है जो संजय सिंह केस में दिए गए फैसले के एकदम विपरीत है। आयोग ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

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