UPSSSC Recruitment: तीन साल बाद भर्ती रद्द होने से मुश्किल में 9 लाख युवाओं का भविष्य, जानिए क्या है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग (UPSSSC) ने ग्राम विकास अधिकारी, पंचायत धिकारी और समाज कल्याण अधिकारी के 1953 पदों पर होने वाली भर्ती परीक्षा-2018 को भ्रष्टाचार के चलते तीन साल बाद रद्द कर दिया गया है. इसके लिए 14 लाख से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था. जिसमें से 9.5 लाख ने परीक्षा दी थी. आयोग के इस कदम से इन छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है.
इसके अलावा आयोग ने अलग-अलग विभागों की 2047 पदों के लिए होने वाली भर्ती परीक्षाएं भी टाल दी हैं. हालांकि इसके लिए भ्रष्टाचार की बजाए पंचायत चुनाव को वजह माना जा रहा है. साथ में ही परीक्षा टालने के चलते यह तर्क अभ्यर्थियों के गले नहीं उतर रहा है. आइए देखते हैं परीक्षा रद़्द करने का क्या है पूरा मामला.
136 मुन्ना भाई पर हुई थी एफआईआर
22 और 23 दिसंबर 2018 को प्रदेश के विभिन्न केंद्रों पर ग्राम पंचायत अधिकारी, ग्राम विकास अधिकारी और समाज कल्याण पर्यवेक्षक के कुल 1953 पदों पर भर्ती के लिए लिखित परीक्षाएं हुई. इसके परीक्षा परिणाम 26 अगस्त 2019 को जारी किए गए. लेकिन परीक्षाओं में मुन्ना भाई बैठाने और भ्रष्टाचार की शिकायतें मिलने के बाद रिजल्ट जारी होने से दो दिन पूर्व आयोग ने 24 अगस्त को 136 आरोपियों को चिन्हित करके उन्हें परीक्षा परिणाम से बाहर कर दिया. इसके बाद आयोग के अनुसचिव राम नरेश प्रजापति ने 31 अगस्त को चिन्हित किए गए 136 आरोपियों के खिलाफ विभिन्न धाराओं में लखनऊ के विभूति खंड थाने में मुकदमा दर्ज कराया.
ग्राम विकास मंत्री ने की थी परिणाम रद्द करने की मांग
आरोपी चिन्हित कर लिए गए. उन्हें रिजल्ट से बाहर कर दिया गया. उन पर मुकदमा भी दर्ज हो गया. इसके बाद मामले में एंट्री होती है उत्तर प्रदेश के ग्राम विकास मंत्री राजेंद्र प्रताप सिंह उर्फ मोती सिंह की. उन्होंने सितंबर 2019 में परीक्षा परिणाम पर सवाल उठाते हुए इसे रद्द करने की मांग की और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस संबंध में पत्र लिखा. मंत्री मोती सिंह ने इस बात की भी आशंका व्यक्त की कि इस भ्रष्टाचार में आयोग के सदस्य पूर्ण रूप से संलिप्त हैं.