DELHI TEACHER RECRUITMENT : जवाब दाखिल नहीं कर पर DSSSB पर 5000 रुपये जुर्माना

DELHI TEACHER RECRUITMENT  : जवाब दाखिल नहीं कर पर DSSSB पर 5000 रुपये जुर्माना




दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसएसबी) ने गुरुवार को उच्च न्यायालय में यह नहीं बताया कि दिल्ली सरकार के आग्रह के बाद भी 12,165 शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया शुरू क्यों नहीं हो रही है। आदेश के बावजूद जवाब दाखिल नहीं किए जाने पर उच्च न्यायालय ने डीएसएसएसबी को आड़े हाथ लिया। जस्टिस नज्मी वजीरी ने इसे गंभीरता से लेते हुए डीएसएसएसबी पर 5 हजार रुपये जुर्माना लगाया। साथ ही जुर्माने की रकम याचिकाकर्ता संगठन की ओर से पेश अधिवक्ता आशोक अग्रवाल को देने का निर्देश दिया। इससे पहले डीएसएसएसबी ने न्यायालय को बताया कि उसने इस मामले में जवाब तैयार कर लिया है और जल्द ही इसे दाखिल कर दिया जाएगा।


उच्च न्यायालय ने पिछले सप्ताह डीएसएसएसबी के अध्यक्ष को यह बताने के लिए कहा था कि सरकार के आग्रह के बाद भी डीएसएसएसबी ने अब तक भर्ती प्रक्रिया क्यों नहीं शुरू की गई है। न्यायालय ने यह आदेश उस याचिका पर दिया था जिसमें कहा गया था कि सरकार द्वारा आग्रह पत्र भेजे जाने के बाद भी 12165 शिक्षकों की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी नहीं कर रही। इनमें से 11,139 पदों को भरने के लिए आग्रह पत्र मार्च, 2020 में ही बोर्ड को भेजे गए थे जबकि बाकी पदों के लिए जनवरी, 2021 में आग्रह भेजे गए। साथ ही यह भी बताने के लिए कहा था कि भर्ती के लिए विज्ञापन कब तक जारी किएं जाएंगे। याचिका में डीएसएसएसबी को शिक्षकों की बहाली के लिए तत्काल विज्ञापन जारी करने का आदेश देने की मांग की गई है। गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने याचिका में कहा है कि दिल्ली सरकार ने पिछले साल 18 मार्च को 11,139 और 21 जनवरी, 2021 को 926 शिक्षकों के खाली पदों (कुल 12,165 पद) को भरने के लिए डीएसएसएसबी को आग्रह पत्र भेजा था। लेकिन, बोर्ड भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के लिए कोई समुचित कदम नहीं उठा रहा है। 


क्यों नहीं भरे जा रहे प्रिंसिपल के पद, सरकार की खिंचाई 

सरकारी स्कूलों में प्राचार्य के खाली पदों को नहीं भरे जाने के मसले पर जवाब नहीं देने पर उच्च न्यायालय ने दिल्ली सरकार को भी आड़े हाथ लिया। न्यायालय ने सरकार से कहा कि आखिर इसमें देरी क्यों हो रही है।  इससे पहले सरकार ने इस मसले पर जवाब दाखिल करने के लिए वक्त देने की मांग की। पिछली सुनवाई पर न्यायालय ने कहा था कि सरकारी स्कूलों में प्राचार्य के 77 फीसदी पद खाली हैं और यह गंभीर चिंता का विषय है। न्यायालय ने सरकार को यह बताने के लिए कहा था कि प्राचार्य के पदों को भरने के लिए क्या कदम उठा रही है। यह आदेश तब दिया गया था जब अधिवक्ता अग्रवाल ने कहा था कि प्राचार्य के कुल स्वीकृत 745 में सिर्फ 215 प्राचार्य अभी स्कूल में हैं। उन्होंने कहा कि इनमें से भी काफी संख्या में प्राचार्य के बजाए अन्य कामों में लगाए गए हैं।


20 साल बाद भी आदेश का पालन नहीं

अधिवक्ता अग्रवाल ने अपनी याचिका में कहा है कि वर्ष 2001 में उच्च न्यायालय ने सरकार और नगर निगम के स्कूलों में शिक्षकों के खाली पदों को भरने का निर्देश दिया था। उन्होंने न्यायालय को बताया है कि 20 साल पुराने फैसले के हिसाब से हर साल अप्रैल में सरकार और नगर निगम के स्कूलों में रिक्त पदों की संख्या शून्य होनी चाहिए। याचिका के अनुसार मौजूदा समय में सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के 35 हजार और नगर निगम के स्कूलों में पांच हजार पद खाली हैं।


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