शिक्षामित्रों की कहानी ::: बीते उन्नीस सालों में कई उतार चढ़ाव के गवाह बने , क्लिक करे और पढ़े शिक्षामित्रों की कहानी

शिक्षामित्रों की कहानी ::: बीते उन्नीस सालों में कई उतार चढ़ाव के गवाह बने , क्लिक करे और पढ़े शिक्षामित्रों की कहानी 





यूपी में बेसिक शिक्षा या शिक्षक भर्ती की चर्चा शिक्षामित्रों के बगैर पूरी नहीं हो सकती। पिछले 19 सालों से प्रदेश के एक लाख 13 हजार से अधिक प्राथमिक स्कूलों में पढ़ा रहे 1.50 लाख से अधिक शिक्षामित्र सहायक अध्यापक पद पर नियुक्ति के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इन्हीं की याचिका पर दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने 69 हजार भर्ती में 37,339 पद खाली रखने का आदेश दिया है। आइए शिक्षामित्रों की पूरी कहानी जानते हैं।

शिक्षकों की कमी से जूझ रही प्रदेश सरकार ने शिक्षा के सार्वभौमीकरण का लक्ष्य पाने के लिए शिक्षामित्र योजना लागू की थी। इसके बाद चयन समेत अन्य औपचारिकताएं पूरी होने में तकरीबन डेढ़ साल लगे और जनवरी-फरवरी 2001 से शिक्षामित्रों की नियुक्ति ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में 2250 रुपये मानदेय पर की गई।

न्यूनतम अर्हता इंटरमीडिएट रखी गई थी। हालांकि यह योजना पूर्ण रूप से एक जुलाई 2001 से शुरू हुई। स्कूलों में पढ़ाई शुरू करने से पहले शिक्षामित्रों को एक महीने का प्रशिक्षण दिया गया, जिसके लिए उन्हें उस एक महीने के लिए 400 रुपये मानदेय दिया गया। पिछली सरकार ने बगैर टीईटी शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करने का निर्णय लिया। समायोजन के पहले उनका मानदेय 3500 था जबकि शिक्षक बनने के बाद तकरीबन 28 हजार रुपये वेतन मिलने लगा और 27 जुलाई 2017 को जब सुप्रीम कोर्ट से समायोजन निरस्त हुआ तो उस वक्त उन्हें लगभग 40 हजार रुपये वेतन मिल रहा था। समायोजन निरस्त होने के बाद सरकार ने अगस्त 2017 में उनका मानदेय 3500 से बढ़ाकर 10000 रुपये कर दिया और उसी मानदेय पर वे पिछले तीन सालों से प्राथमिक स्कूलों में पढ़ा रहे हैं।



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