69000 शिक्षक भर्ती : हाई कोर्ट ने प्रश्नों के गलत जवाब पर यूपी सरकार से मांगी जानकारी , क्लिक करे और पढ़े पूरी खबर

69000 शिक्षक भर्ती : हाई कोर्ट ने प्रश्नों के गलत जवाब पर यूपी सरकार से मांगी जानकारी , क्लिक करे और पढ़े पूरी खबर 




इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 69 हजार अध्यापकों की भर्ती परीक्षा में सवालों के उत्तर गलत होने के मामले में एक अर्जी स्वीकार करते हुए सरकार से जानकारी मांगी है। भर्ती परीक्षा की उत्तर कुंजी जारी होने के बाद हजारों अभ्यर्थियों ने प्रश्नों के विकल्प गलत होने या दो विकल्प सही होने अथवा आउट ऑफ सेलेबस सवाल पूछे जाने की शिकायत की थी। इनको दरकिनार कर परीक्षा का परिणाम घोषित कर दिया गया। इसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले अभ्यर्थियों की बाढ़ आ गई है। 

 सैकड़ों अभ्यर्थियों की ओर से दर्जनों वकीलों ने अर्जेन्सी अर्जी देकर याचिका दायर करने और तत्काल सुनवाई की मांग की है। ऐसी ही रोहित शुक्ल व 110 अभ्यर्थियों की एक अर्जी को स्वीकार करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक वर्मा ने राज्य सरकार से जानकारी मांगी है और याचिका को सुनवाई के लिए 28 मई को पेश करने का आदेश दिया है।
वहीं, तमाम अधिवक्ताओं की अर्जेंसी अर्जियों को सुनवाई से इंकार करते हुए निरस्त कर दिया गया है। महानिबंधक कार्यालय इस संबंध में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दे पा रहा है कि एक ही मामले में दोहरा मापदंड क्यों अपनाया गया है। लखनऊ पीठ ने भी ऋषभ मिश्र व अन्य की याचिका पर सरकार से जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है और 28 मई को सुनवाई के लिए पेश करने का आदेश दिया है। 
वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, केपी शुक्ल, संतोष कुमार त्रिपाठी, ऋतेश श्रीवास्तव, सीमान्त सिंह सहित कई अधिवक्ताओं ने महानिबंधक कार्यालय के इस रवैये से नाराजगी जाहिर की है और कहा है कि यह न्यायिक मानदंडों एवं न्यायिक एकरूपता के सिद्धांतों के खिलाफ है। इन अधिवक्ताओं को याचिका दाखिल न कर पाने के कारण वादकारियों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है।

वरिष्ठ अधिवक्ता बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष आर के ओझा ने अर्जेन्सी अर्जी खारिज होने के बाद दुबारा अर्जी दाखिल की है। उन्हें महानिबंधक कार्यालय से बताया गया कि बुधवार को याचिका कोर्ट में पेश होगी किंतु अभी तक इसकी सूचना वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं होने से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। इनका कहना है कि एक जैसे मामलों की एक साथ सुनवाई की जानी चाहिए। एक को सुनने और अन्य सैकडों की अर्जी खारिज करने से न्यायिक व्यवस्था के प्रति जनता में निराशा फैलेगी।




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