संघ लोक सेवा आयोग ::: प्रश्नों के असंतुलन से गिरा चयन का ग्राफ , हर स्तर पर हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों की मुसीबत , क्लिक करे और पढ़े पूरी पोस्ट

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संघ लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा के हर स्तर पर सवालों के असंतुलन ने हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है। वर्ष 2010 से पहले प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा के लिए जो भी पेपर तैयार किए जाते थे या इंटरव्यू में जो सवाल पूछे जाते थे, उनमें हिंदी सहित अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी प्रमुखता दी जाती थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। प्रश्नों का नियत न होना एक तरह के भाग्यवाद और लॉटरी सिस्टम को बढ़ावा दे रहा है। देखा जा रहा है कि कई बार बहुतायत में पर्यावरण या अर्थव्यवस्था से प्रश्न पूछे जाते हैं। पेपर का लगभग एक चौथाई भाग किसी एक विषय से ही नियत हो जाता है। ऐसे में संबंधित अभ्यर्थी को इसका अतिरिक्त लाभ मिल जाता है और वह प्रारंभिक परीक्षा से ही दौड़ में आगे निकल जाता है जबकि उससे अधिक योग्य अभ्यर्थी सिर्फ इसलिए पिछड़ जाते हैं कि उसके विषय से काफी कम संख्या में सवाल पूछे गए।
प्रतियोगी छात्रा शालिनी और उनकी टीम की ओर से जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से वर्ष 2010 में दस फीसदी, 2013 में 18 फीसदी, 2014 एवं 2016 में 25-25 फीसदी और 2018 में 20 फीसदी सवाल पूछे गए। वर्ष 2010 से 2018 तक के बीच इन विषयों के सवालों की संख्या दोगुना हो गई। विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण से संबंधित ज्यादातर पाठ्य सामग्रियां अंगेजी माध्यम में ही उपलब्ध हैं।
परंपरागत विषयों से पूछे जा रहे कम सवाल
एक तरफ विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण जैसे विषयों से जुड़े सवालों की संख्या तेजी से बढ़ी है दूसरी ओर संविधान, इतिहास, भूगोल से जुड़े सवालों की संख्या कम हुई है। ऐसे में मानविकी के विषय लेकर हिंदी माध्यम से तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को बड़े पैमाने पर नुकसान हो रहा है।
वन सेवा की परीक्षा साथ होने से नुकसान
विशेषज्ञों के मुताबिक वर्ष 2013 से वन सेवा की प्रारंभिक परीक्षा सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षा के साथ ली जाने लगी। इसके बाद से ही पर्यावरण एवं विज्ञान प्रौद्योगिकी के प्रश्नों का प्रतिशत एक चौथाई हुआ है, जिससे सीधे विज्ञान विषय की पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थी लाभांवित हो रहे हैं।
मुख्य परीक्षा में भी बदली सवालों की प्रकृति
- मुख्य परीक्षा में भी सवाल पूछे जाने की प्रकृति में काफी बदलाव आया है। इस तरह के सवाल पूछे जाते थे, जो सामान्य प्रकृति के होते थे लेकिन अब दायरा बढ़ा दिया गया है। सवाल नए तरह से पूछे जा रहे हैं, जिनसे जुड़े कंटेंट ज्यादातर अंग्रेजी पाठ्य सामग्रियों में ही उपलब्ध हैं और भाषाई समस्या के कारण हिंदी माध्यम छात्रों की पहुंच सीमित है।
अभ्यर्थियों के सुझाव
प्रश्नो की संख्या प्रत्येक विषय से निर्धारित की जाए।
प्रारंभिक परीक्षा में करेंट और रिपोर्ट्स के आंकड़े से मेमोरी टेस्ट न करके परंपरागत विषयों से ज्यादा प्रश्न पूछे जाएं
प्री, मेंस और इंटरव्यू में क्षेत्रीय भाषाओं और अंग्रेजी भाषा के बीच संतुलन स्थापित किया जाए
प्रेजेंटेशन और विश्लेषण दोनों आधारों पर अंक निर्धारित किए जाएं।
साक्षात्कार का फार्मेट नियत हो और अंक देने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक हो। केवल चेयरमैन ही अंक न दें।



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