यूपी पुलिस में चयन के बाद प्रशिक्षण प्राप्त करते वक़्त बर्खास्त की गयी ट्रेनी महिला सिपाहियों की बर्खास्तगी हाई कोर्ट ने की रद्द , बताया नियमो के खिलाफ , क्लिक करे और पढ़े पूरी पोस्ट

यूपी पुलिस में चयन के बाद प्रशिक्षण प्राप्त करते वक़्त बर्खास्त की गयी ट्रेनी महिला सिपाहियों की बर्खास्तगी हाई कोर्ट ने की रद्द  , बताया नियमो के खिलाफ , क्लिक करे और पढ़े पूरी पोस्ट 



 पुलिस विभाग में चयन के बाद प्रशिक्षण प्राप्त कर रही महिला कांस्टेबलों की बर्खास्तगी का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि प्रशिक्षण ले रही कांस्टेबलों की बर्खास्तगी नियमानुसार नहीं है। बर्खास्तगी से पूर्व उन्हें भी विभागीय कार्रवाई के लिए निर्धारित प्रक्रिया पूरी करना जरूरी होगा। केवल तथ्यात्मक जांच कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर स्पष्टीकरण लेकर सिपाहियों की बर्खास्तगी गलत है ।
कोर्ट ने इसी आधार पर प्रयागराज के एसएसपी द्वारा दिए बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया है। कांस्टेबलों का पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम का कहना था कि याचीगण ने वाराणसी में प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षण स्थल पर अव्यवस्था और उनके वीडियो बनाए जाने की अफवाह पर धरना प्रदर्शन किया था। लगभग चार सौ महिला कांस्टेबल इसमें शामिल थीं। चार कांस्टेबलों को प्रशिक्षण से बाहर कर मूल जनपद प्रयागराज भेज दिया गया। एसएसपी प्रयागराज ने 26 जून 19 को चारों कांस्टेबलों को बर्खास्त कर दिया था।
बर्खास्तगी आदेश को अनामिका सिंह और अन्य ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका पर न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने सुनवाई की। कोर्ट ने बर्खास्तगी आदेश रद्द करते हुए याची सिपाहियों को निर्देश दिया है कि वे अपने कार्य के लिए बिना शर्त माफी मांगे और अधिकारी के समक्ष इस आशय की अंडरटेकिंग दें कि भविष्य में वे ऐसे किसी भी कार्य में शामिल नहीं होंगी। संबंधित अधिकारी उनकी इस अर्जी पर विचार कर उनकी आगे की शेष ट्रेनिंग को लेकर आदेश पारित करेगा।
सिर्फ रिपोर्ट पर कार्रवाई पर्याप्त नहीं
कोर्ट ने कांस्टेबलों को बर्खास्त करने के लिए तीन सदस्यीय समिति की रिपोर्ट को आधार बनाए जाने को पर्याप्त नहीं माना है। आठ जून की रिपोर्ट में याची सिपाहियों से स्पष्टीकरण लेने के बाद बर्खास्तगी आदेश पारित किया गया था। रिपोर्ट 42 पेज की थी और इसमें 50 लोगों का बयान लिया गया था। रिपोर्ट के अलावा और कोई जांच नहीं कराई गई थी। महिला सिपाहियों के अधिवक्ता का तर्क था कि सिपाहियों पर अनुशासनहीनता व दुराचरण करने का आरोप है। मगर, इन्हें बिना विभागीय कार्रवाई पूरी किए सेवा बिना से हटा दिया गया है, जो गैरकानूनी है ।



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