माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड ::: अन्य कार्यो पर फोकस पड़ा भारी , अधियाचन बदलने, पदों का सत्यापन करने में ही गुजरे डेढ़ बरस , अध्यक्ष व सदस्य आज उप मुख्यमंत्री संग करेंगे मंथन , क्लिक करे और पढ़े पूरी पोस्ट
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अध्यक्ष बीरेश कुमार ने डेढ़ बरस पहले कार्यभार ग्रहण करने के बाद परीक्षा कैलेंडर देने सहित भर्तियों को लेकर तमाम दावे किए थे। प्रतियोगी परीक्षा कैलेंडर का इंतजार ही करते रहे। चंद दिन पहले एक भर्ती की समय सारिणी सामने आई तो हंगामा मचा। यह नौबत इसलिए आई, क्योंकि चयन बोर्ड ने भर्तियों पर फोकस करने की जगह अन्य कार्यो में ही अधिकांश समय गवां दिया।
चयन बोर्ड का पुनर्गठन अप्रैल 2018 में हुआ, बोर्ड की पहली बैठक में तमाम निर्णय लिए गए। उन पर आगे बढ़ने की जगह 12 जुलाई 2018 को चयन बोर्ड ने प्रवक्ता व स्नातक शिक्षक परीक्षा 2016 के जीव विज्ञान सहित अन्य के अधियाचित पदों को हटाने का एलान कर दिया। दावा किया गया कि यह विषय ही यूपी बोर्ड के कॉलेजों में नहीं है। इसमें टीजीटी जीव विज्ञान के ही करीब 67 हजार से अधिक अभ्यर्थी प्रभावित हुए। चयन बोर्ड, यूपी बोर्ड से लेकर शासन तक महीनों हंगामा हुआ, आखिरकार प्रकरण हाईकोर्ट पहुंचा, अब भी इस पर निर्णय नहीं हो सका है। ताज्जुब यह है कि यूपी बोर्ड ने शासन को रिपोर्ट भेजी कि भले ही यह विषय अब नहीं है, लेकिन पाठ्यक्रम में उसकी पढ़ाई होती है इसलिए परीक्षा कराई जाए। फिर भी निर्णय नहीं हुआ।
इसी तरह से अधियाचन के लिए चयन बोर्ड ने ऑनलाइन प्रक्रिया का खूब ढोल पीटा, जबकि यह व्यवस्था सपा शासन में पूर्व अध्यक्ष हीरालाल गुप्त के समय ही शुरू होने वाली थी, उन्होंने फतेहपुर जिले में प्रयोग के तौर पर कार्य भी कराया। नए अधियाचन लेने में जिलों में कई मुद्दों को लेकर असमंजस रहा, उस पर चयन बोर्ड मौन रहा। इसीलिए पदों का सही से सत्यापन व पर्याप्त अधियाचन नहीं आ सके हैं।
2011 भर्ती के चयन परिणाम में डीआइओएस से पद सत्यापित कराए गए जो पद खाली मिले उन्हीं पर पैनल भेजने का निर्णय लिया। इससे तमाम चयनित होकर नियुक्ति नहीं पा सके हैं। इन कार्यो से प्रतियोगियों में असंतोष बढ़ता रहा, नई भर्ती की जगह लगातार विवाद ही बढ़ते रहे। चयन बोर्ड के तत्कालीन सचिव ने यह भी कहा था कि जिन डीआइओएस ने 2016 के गलत अधियाचन भेजे थे, उनकी जांच कराकर कार्रवाई कराएंगे। उस पर कुछ नहीं हुआ। अब भर्तियां तेज करना सबसे बड़ी चुनौती है।
माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अध्यक्ष बीरेश कुमार ने डेढ़ बरस पहले कार्यभार ग्रहण करने के बाद परीक्षा कैलेंडर देने सहित भर्तियों को लेकर तमाम दावे किए थे। प्रतियोगी परीक्षा कैलेंडर का इंतजार ही करते रहे। चंद दिन पहले एक भर्ती की समय सारिणी सामने आई तो हंगामा मचा। यह नौबत इसलिए आई, क्योंकि चयन बोर्ड ने भर्तियों पर फोकस करने की जगह अन्य कार्यो में ही अधिकांश समय गवां दिया।
चयन बोर्ड का पुनर्गठन अप्रैल 2018 में हुआ, बोर्ड की पहली बैठक में तमाम निर्णय लिए गए। उन पर आगे बढ़ने की जगह 12 जुलाई 2018 को चयन बोर्ड ने प्रवक्ता व स्नातक शिक्षक परीक्षा 2016 के जीव विज्ञान सहित अन्य के अधियाचित पदों को हटाने का एलान कर दिया। दावा किया गया कि यह विषय ही यूपी बोर्ड के कॉलेजों में नहीं है। इसमें टीजीटी जीव विज्ञान के ही करीब 67 हजार से अधिक अभ्यर्थी प्रभावित हुए। चयन बोर्ड, यूपी बोर्ड से लेकर शासन तक महीनों हंगामा हुआ, आखिरकार प्रकरण हाईकोर्ट पहुंचा, अब भी इस पर निर्णय नहीं हो सका है। ताज्जुब यह है कि यूपी बोर्ड ने शासन को रिपोर्ट भेजी कि भले ही यह विषय अब नहीं है, लेकिन पाठ्यक्रम में उसकी पढ़ाई होती है इसलिए परीक्षा कराई जाए। फिर भी निर्णय नहीं हुआ।
इसी तरह से अधियाचन के लिए चयन बोर्ड ने ऑनलाइन प्रक्रिया का खूब ढोल पीटा, जबकि यह व्यवस्था सपा शासन में पूर्व अध्यक्ष हीरालाल गुप्त के समय ही शुरू होने वाली थी, उन्होंने फतेहपुर जिले में प्रयोग के तौर पर कार्य भी कराया। नए अधियाचन लेने में जिलों में कई मुद्दों को लेकर असमंजस रहा, उस पर चयन बोर्ड मौन रहा। इसीलिए पदों का सही से सत्यापन व पर्याप्त अधियाचन नहीं आ सके हैं।
2011 भर्ती के चयन परिणाम में डीआइओएस से पद सत्यापित कराए गए जो पद खाली मिले उन्हीं पर पैनल भेजने का निर्णय लिया। इससे तमाम चयनित होकर नियुक्ति नहीं पा सके हैं। इन कार्यो से प्रतियोगियों में असंतोष बढ़ता रहा, नई भर्ती की जगह लगातार विवाद ही बढ़ते रहे। चयन बोर्ड के तत्कालीन सचिव ने यह भी कहा था कि जिन डीआइओएस ने 2016 के गलत अधियाचन भेजे थे, उनकी जांच कराकर कार्रवाई कराएंगे। उस पर कुछ नहीं हुआ। अब भर्तियां तेज करना सबसे बड़ी चुनौती है।