देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आरक्षण का लाभ तीन-चार ओबीसी जातियों तक ही सीमित , यादव, कुर्मी, साहू और नाई उठा रहे ओबीसी आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ , सरकार कर रही अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ के आधार पर वर्गीकरण करने पर विचार , क्लिक करे और पढ़े पूरी खबर
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने के बाद सरकार का अगला कदम विकास की दौड़ में पिछड़ गईं ओबीसी जातियों को आगे बढ़ाने का है। सरकार को ऐसी जातियों व उपजातियों का पता लगाने के लिए जस्टिस रोहणी आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है। हालांकि इस बीच आयोग के पास चौंकाने वाली जानकारी आई है। इसके मुताबिक, ओबीसी को मिले 27 फीसद आरक्षण में से 20 फीसद से अधिक यानी कुल कोटे का लगभग 75 फीसद लाभ सिर्फ तीन-चार ओबीसी जातियों तक ही सीमित रहा है। इनमें यादव, कुर्मी, साहू और नाई शामिल हैं। इस तरह अन्य ओबीसी जातियों-उपजातियों को कोटे के शेष सात फीसद में ही प्रतिनिधित्व मिल रहा है। लिहाजा, सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ के आधार पर वर्गीकरण करने पर विचार कर रही है।
ओबीसी आरक्षण को लेकर यह स्थिति तब है, जब केंद्रीय सूची में मौजूदा समय में ओबीसी जातियां शामिल हैं। ऐसे में आरक्षण के लाभ से एक बड़े वर्ग का वंचित रहना चौंकाने वाला है। हालांकि आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अभी इसका निचले स्तर तक अध्ययन कराया जा रहा है। आयोग ने इस दौरान जो आधार बनाया है, उनमें ओबीसी जातियों के शैक्षणिक, सरकारी नौकरी व पंचायत स्तर पर मिलने वाले प्रतिनिधित्व को शामिल किया है। इसके अलावा छात्रवृत्ति आदि में भी मिलने वाले लाभों को वर्गीकृत किया है।
सरकार की कोशिश है कि लाभ से वंचित रह गईं जातियों को ज्यादा लाभ देकर उन्हें आगे बढ़ाया जाए। सरकार के लिए वैसे भी यह आसान होगा, क्योंकि कई राज्य पहले से ही ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण कर चुके हैं। माना जा रहा है कि सरकार को चुनाव के दौरान इसका लाभ भी मिल सकता है। बता दें कि सरकार ने ओबीसी के वर्गीकरण को लेकर गठित जस्टिस जी. रोहणी के नेतृत्व में आयोग का गठन किया है, जिसका कार्यकाल हाल ही में बढ़ाकर नवंबर 2018 तक किया गया है।
आवाज उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी
ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण के वर्गीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे राजनीतिक दलों को सरकार मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी में है। मंडल आयोग ने भी आरक्षण की सिफारिश करते समय इस बात की आशंका जताई थी कि कहीं ऐसा न हो कि इनमें शामिल कुछ मजबूत जातियां ही सब के हिस्से का लाभ हड़प लें। यानी ओबीसी में सारी मलाई खाने वाली ‘क्रीमीलेयर’ न बन जाए। इसलिए मंडल आयोग की ओर से उन सारी टिप्पणियों को तलाशा जा रहा है, जिसे आयोग ने आरक्षण लागू होने के बाद निगरानी रखने के लिए कहा था, लेकिन वर्षो तक इसकी किसी ने सुध नहीं ली।
इसके अलावा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी 2011 में ही इसके वर्गीकरण की सिफारिश की थी।
इन राज्यों में हो चुका वर्गीकरण
ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण देश के कई राज्यों में पहले से ही किया जा चुका है। हालांकि यह वर्गीकरण राज्य सूची के आधार पर किया गया है। जिन राज्यों में यह वर्गीकरण किया गया है, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी आदि हैं।
अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) आयोग को संवैधानिक दर्जा दिलाने के बाद सरकार का अगला कदम विकास की दौड़ में पिछड़ गईं ओबीसी जातियों को आगे बढ़ाने का है। सरकार को ऐसी जातियों व उपजातियों का पता लगाने के लिए जस्टिस रोहणी आयोग की रिपोर्ट का इंतजार है। हालांकि इस बीच आयोग के पास चौंकाने वाली जानकारी आई है। इसके मुताबिक, ओबीसी को मिले 27 फीसद आरक्षण में से 20 फीसद से अधिक यानी कुल कोटे का लगभग 75 फीसद लाभ सिर्फ तीन-चार ओबीसी जातियों तक ही सीमित रहा है। इनमें यादव, कुर्मी, साहू और नाई शामिल हैं। इस तरह अन्य ओबीसी जातियों-उपजातियों को कोटे के शेष सात फीसद में ही प्रतिनिधित्व मिल रहा है। लिहाजा, सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग का लाभ के आधार पर वर्गीकरण करने पर विचार कर रही है।
ओबीसी आरक्षण को लेकर यह स्थिति तब है, जब केंद्रीय सूची में मौजूदा समय में ओबीसी जातियां शामिल हैं। ऐसे में आरक्षण के लाभ से एक बड़े वर्ग का वंचित रहना चौंकाने वाला है। हालांकि आयोग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक अभी इसका निचले स्तर तक अध्ययन कराया जा रहा है। आयोग ने इस दौरान जो आधार बनाया है, उनमें ओबीसी जातियों के शैक्षणिक, सरकारी नौकरी व पंचायत स्तर पर मिलने वाले प्रतिनिधित्व को शामिल किया है। इसके अलावा छात्रवृत्ति आदि में भी मिलने वाले लाभों को वर्गीकृत किया है।
सरकार की कोशिश है कि लाभ से वंचित रह गईं जातियों को ज्यादा लाभ देकर उन्हें आगे बढ़ाया जाए। सरकार के लिए वैसे भी यह आसान होगा, क्योंकि कई राज्य पहले से ही ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण कर चुके हैं। माना जा रहा है कि सरकार को चुनाव के दौरान इसका लाभ भी मिल सकता है। बता दें कि सरकार ने ओबीसी के वर्गीकरण को लेकर गठित जस्टिस जी. रोहणी के नेतृत्व में आयोग का गठन किया है, जिसका कार्यकाल हाल ही में बढ़ाकर नवंबर 2018 तक किया गया है।
आवाज उठाने वालों को मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी
ओबीसी को मिलने वाले आरक्षण के वर्गीकरण के खिलाफ आवाज उठा रहे राजनीतिक दलों को सरकार मुंहतोड़ जवाब देने की तैयारी में है। मंडल आयोग ने भी आरक्षण की सिफारिश करते समय इस बात की आशंका जताई थी कि कहीं ऐसा न हो कि इनमें शामिल कुछ मजबूत जातियां ही सब के हिस्से का लाभ हड़प लें। यानी ओबीसी में सारी मलाई खाने वाली ‘क्रीमीलेयर’ न बन जाए। इसलिए मंडल आयोग की ओर से उन सारी टिप्पणियों को तलाशा जा रहा है, जिसे आयोग ने आरक्षण लागू होने के बाद निगरानी रखने के लिए कहा था, लेकिन वर्षो तक इसकी किसी ने सुध नहीं ली।
इसके अलावा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने भी 2011 में ही इसके वर्गीकरण की सिफारिश की थी।
इन राज्यों में हो चुका वर्गीकरण
ओबीसी आरक्षण का वर्गीकरण देश के कई राज्यों में पहले से ही किया जा चुका है। हालांकि यह वर्गीकरण राज्य सूची के आधार पर किया गया है। जिन राज्यों में यह वर्गीकरण किया गया है, उनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार, हरियाणा, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, जम्मू-कश्मीर और पुडुचेरी आदि हैं।
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