लोक सेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में दाखिल याचिकाएं हो जाएंगी औचित्यहीन

लोक सेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में दाखिल याचिकाएं हो जाएंगी औचित्यहीन



लोक सेवा आयोग की भर्तियों की सीबीआई जांच के बाद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में दाखिल संबंधित याचिकाएं औचित्यहीन हो जाएंगी। याचिकाएं जिन मामलों को लेकर दाखिल की गई हैं, उनका निस्तारण सीबीआई की जांच से हो सकता है। ऐसे में याचिकाओं का बहुत महत्व नहीं रह जाएगा।

आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल में सर्वाधिक याचिकाएं दाखिल हुई थीं। प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय को आयोग से आरटीआई के तहत मिली जानकारी के मुताबिक डॉ. यादव के अध्यक्ष पद पर कार्यभार ग्रहण करने की तिथि यानी दो अप्रैल 2013 से 23 फरवरी 2016 तक हाईकोर्ट में 756 जबकि सुप्रीम कोर्ट में 57 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। इसके साथ ही विभिन्न प्रकरण को लेकर कुल पांच पीआईएल भी दाखिल किए गए थे। अवनीश ने 23 फरवरी 2016 के बाद हुई याचिकाओं के बारे में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी लेकिन आयोग ने आरटीआई के नियमों का हवाला देते हुए जानकारी देने से मना कर दिया।

 प्रतियोगियों का अनुमान है कि 23 फरवरी 2016 के बाद हुई याचिकाओं को जोड़ लिया जाए तो संख्या एक हजार से अधिक हो जाएगी। 

पीसीएस, पीसीएस-जे, लोअर सबआर्डिनेट, समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी, कृषि तकनीकी सहायक समेत आयोग द्वारा कराई गई सीधी भर्तियों में अनियमितता, गलत प्रश्न पूछे जाने आदि को लेकर दाखिल इन याचिकाओं से जुड़े याचियों के प्रकरण का निवारण सीबीआई जांच में हो सकता है। शासन ने भी सीबीआई जांच का फैसला लेने से पूर्व आयोग से दर्ज मुकदमों का ब्योरा लिया था। ये मुकदमे सीबीआई जांच में महत्वपूर्ण आधार साबित होंगे। सीबीआई अपनी प्रारंभिक पड़ताल में इन याचिकाओं के बारे में जानकारी जुटा भी चुकी है।

पैरवी पर खर्च हो चुके है दो करोड़ 34 लाख रुपये 

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी अवनीश पांडेय ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के इन मुकदमों की पैरवी पर आयोग द्वारा किए गए व्यय का ब्योरा भी मांगा था। अवनीश के मुताबिक आयोग ने 23 फरवरी 2016 तक मुकदमों की पैरवी पर दो करोड़ 34 लाख रुपये व्यय दिखाया है। इसके बाद हुए व्यय की जानकारी नहीं दी गई। प्रतियोगियों का कहना है कि इस व्यय में आयोग द्वारा अपने पैनल के अतिरिक्त अन्य वकीलों की फीस पर किए गए व्यय को शामिल नहीं किया गया है।

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